सर्द भरी रात

कहानी

एक सर्द रात

जर्जर सी काया, खुले आसमान के नीचे कपड़ों का एक टेंट लगाकर एक बूढ़ी अम्मा उसमें रहा करती थी । उसकी उम्र तकरीबन 75 साल रही थी । स्कूल से आते समय हम अक्सर उस बूढ़ी अम्मा से बातें किया करते थे। वह भी मुस्कुरा कर हमसे  चंद बातें कर लिया करती थी ।बात करने पर पता चला की अम्मा के घर परिवार में सभी लोग हैं , परंतु उनके बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया है । वह बेटा जिसे बड़ी मन्नत उसे पाया था । अम्मा की तीन बेटियां भी थी ।जो ब्याह कर अपने घर को चली गई थी । बात उन दिनों की है , जब लड़कियां घर की चारदीवारी में बंद रहा करती थी । चाह कर भी बेटियां मां के लिए कुछ नहीं कर पाती थी।

 बेटे ने मां की वृद्धावस्था से परेशान होकर उसे घर से निकाल दिया था । बूढ़ी अम्मा रोड के किनारे बैठ लोगों से कुछ मांग मांग कर दिन का गुजर-बसर करती थी । बड़ी प्यारी लगती थी वह बूढ़ी अम्मा और उसकी मुस्कान। मानों स्नेह उड़ेल रही हो । दिन महीने बीते रहे और फिर शरद ऋतु का आगमन हुआ। हम लोग अपने टिफिन में से कुछ खाना बचाकर बूढ़ी अम्मा के लिए ले जाया करते थे । बूढ़ी अम्मा मुस्कुराकर कहती बेटा मां ने तुझे खाने के लिए दिया है ।तू खाया कर ! तो हम लोग बोलते थे कि एक रोटी ज्यादा लेकर आए हैं ,अम्मा तुम्हारे लिए : अम्मा मुस्कुरा दिया करती और रोटी खाकर स्नेह भरी नजरों से निहारा करती थी। दिन महीने करके मौसम बीते रहे , फिर शरद ऋतु का मौसम आ गया। शरद ऋतु का वह मौसम ना जाने कौन सा कहर लेकर आने वाला था उसकी जिंदगी में ‌।रोज की तरह हम शरद ऋतु के उन दिनों में भी अम्मा से मिलकर आगे बढ़ जाया करते थे परंतु एक दिन अम्मा अपनी जगह पर नहीं दिखाई दी।
 मैं और मेरी दोस्त आसपास उसे ढूंढ रहे थे, तभी पास की दुकान में बैठे एक भैया ने बताया कि अम्मा का स्वर्गवास हो गया है। वह उस वर्ष की सर्द रात की ठंड को बर्दाश्त नहीं कर पाई थी । रात की ठंड ने उसके प्राण ले लिए ।जो सोच कर बहुत दुख हुआ और साथ ही साथ ऐसा भी लगा कि लोग जिन बेटों की कामना में बेटियों को मार दिया करते हैं , और बेटियों को पराया धन कहकर खुद से अलग कर दिया करते हैं । काश समाज का यह रूप बदल जाए, काश बेटियों को भी मां-बाप की देखरेख करने का उतना ही अधिकार प्राप्त हो सके।

 अगर उनकी बेटियों को यह अधिकार प्राप्त होता तो शायद मां बुढ़िया मां का स्वर्गवास ना होता । आते जाते जब उस जगह पर नजर पड़ती तो अम्मा का मुस्कुराता चेहरा याद आता और आंखें नम हो जाती। बेटे के जन्म के समय मां को जितनी पीड़ा झेलनी पड़ती है बेटियों के जन्म में भी तो उतनी ही पीड़ा झेलनी पड़ती है।

 फिर समाज का यह दोहरा रूप क्यों? क्या बेटियों में प्राण नहीं होते । क्या सच में रक्त के रिश्ते इतनी आसानी से बेटियों के भीतर से खत्म हो जाते हैं। समाज का यह रूप बदलना चाहिए । बेटियों को भी मां बाप का सहारा बनने की छूट मिलनी चाहिए । शायद फिर कोई बुढ़िया अम्मा यूं ठंड में ठिठुर कर अपने प्राण ना त्यागती।


©️®️पूनम शर्मा स्नेहिल ☯️

   11
7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

16-Nov-2021 12:56 AM

सुंदर रचना

Reply

Niraj Pandey

15-Nov-2021 09:10 PM

बहुत खूब

Reply

Swati chourasia

15-Nov-2021 07:24 PM

Very beautiful 👌

Reply